“मेरी नाक बड़ी, मुझे विकास की क्या पड़ी,” राजनीतिक समीक्षा

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मेरी नाक बड़ी, मुझे विकास की क्या पड़ी…….


हमारे उतराखंड में एक लोकोक्ति प्रसिद्ध है, नाक बड़ी होना. नाक बड़ी होना तात्पर्य, मान सम्मान का प्रतीक माना जाता है. और हो भी क्यूँ ना उतराखंडी समाज/व्यक्ति स्वाभिमानी समाज कहलाता है. लेकिन आज यही बड़ी नाक विकास में आड़े आ रही है. बात कर रहे हैं क्षेत्रीय दलों की जो, नाक बड़ी मुझे विकास की क्या पड़ी, लोकोक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं. विषय जितना गम्भीर है उतना ही दुखद भी. सल्ड विधान सभा उपचुनाव परिणाम ने मेरी क़लम को लिखने को मजबूर किया. अपनी जन्मभूमि से प्यार और विकास ने मजबूर किया किसी राजनीतिक प्रतिबधिता ने नहीं. बल्कि इसलिए की न तो सच्चाई से मुँह मोड़ा जा सकता है ना ही आँखो देखे मक्खी निगली जाती है.

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आज उतराखंड कांग्रेस भाजपा से निराश होकर सशक्त राजनीतिक विकल्प की तलाश कर रहा है, जो निश्चित ही क्षेत्रीय दल बन सकता है. लेकिन दुर्भाग्य देखिये, ७० (सत्तर) विधान सभा वाले प्रदेश में 54 से ज़्यादा क्षेत्रीय दल पंजीकृत हैं और तक़रीबन 7 दल चुनाव में ताल ठोकने को तैयार खड़े हैं (प्रमुख नाम, उतराखंड क्रांति दल, उतराखंड क्रांति दल डेमोकरेटिक, उतराखंड रक्षा मोर्चा, उतराखंड प्रगतिशील पार्टी, राज्य स्वराज पार्टी, जनता कैबिनेट पार्टी ) और सबके सरकार बनाने के अपने अपने दावे हैं. दल की जगह दलदल तैयार है, एकाध दल भी इस दलदल से उभर बाहर निकल जाये तो ग़नीमत होगी. ये दलदल भी कारण है, दिल्ली को छलने वाला दल भी आज उतराखंड को छलने को तैयार है और राजनीतिक वैतरणी को पार करने की इच्छा रखने वाले उतराखंडी आज झाड़ू थामे (रि० कर्नल अजय कोठियाल को भावी मुख्यमंत्री मान चुके हैं. उतराखंड के नफ़े नुक़सान की इनको कोई चिंता नहीं, चिंता है झाड़ू के सहारे नेता बनने की l

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अभी हाल में सपन्न सल्ड विधान सभा चुनाव परिणाम से भी क्षेत्रीय दल सबक़ लेने को तैयार नहीं है. पुराना आंदोलनकारी दल यूकेडी मात्र 346 वोट पर सिमट कर रह गया तो दूसरा पुराना दल प्रगतिशील पार्टी 493 वोट लेकर सम्मान बचा पाई. वहीं निर्दलीय 620 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहा. 08/2020 को डॉक्टर देवेश्वर भट्ट के नेतृत्व में स्थापित सर्वजन स्वराज पार्टी, अब राज्य स्वराज पार्टी, में परिवर्तित क्षेत्रीय दल अल्प समय में ही पाँचवे स्थान मत प्राप्त कर सम्मानजनक स्तिथि में रहा. पार्टी में आम आदमी पार्टी के घुसपैठिए न होते तो निश्चित तीसरे/चौथे स्थान पर होती. उप चुनाव आँकड़ो पर चलें तो निर्दलीय या क्षेत्रीय राजनीतिक विकल्प दे सकते हैं. वक़्त का तक़ाज़ा तो ये कहता है की यूकेडी को उनके हाल पर छोड़ कर बाक़ी छोटे दल एकजुट होकर संयुक्त मोर्चे के रूप में चुनाव लड़ें तो उतराखंड को सशक्त राजनीतिक विकल्प दे सकते हैं. “लेकिन, मेरी नाक बड़ी, मुझे विकास की क्या पड़ी” की लोकोक्ति पर चलते हुए यह सत्यता जानते हुए भी की भाजपा का विकल्प नही है, मुख्यमंत्री बनने के हसीन ख़्वाब पाले हुए हैं l

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