आईपीआरएस ने “माय म्यूजिक, माय राइट्स” अभियान कियाकिया शुरू ।

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देहरादून,19 फरवरी, 2024। आईपीआरएस ने अपना राष्ट्रव्यापी अभियान, “माई म्यूजिक, माई राइट्स” लॉन्च किया। यह पहल एक टिकाऊ संगीत उद्योग के लिए, संगीत के अंतर्निहित मूल्य तथा रचनाकारों व उनकी रचनात्मकता का सहयोग व समर्थन करने की जरूरत को लेकर राष्ट्रव्यापी चर्चा छेड़ना चाहती है।

संगीत भारत के सांस्कृतिक चित्रपटल में एक अभिन्न स्थान रखता है, जिसका संदर्भ प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। प्राचीन काल में विचरण करने पर, भारत की अथाह संगीत विरासत की जड़ें उसके पवित्र ग्रंथों में गहराई तक जमी हुई मिलती हैं। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मदेव को सामवेद के दिव्य मंत्रों से संगीत की व्युत्पत्ति करने का श्रेय दिया जाता है, जो स्वयं अलौकिक जगत का प्रतीक है। ब्रह्मा के साथ-साथ, सृष्टि के पालनहार विष्णु, और संहारक शिव जैसे देवताओं को संगीत के संरक्षक के रूप में पूजा जाता है, जो आध्यात्मिकता और संस्कृति के साथ उसके अंतर्भूत संबंध को रेखांकित करता है। दैवीय समूह में, संगीत और ज्ञान की देवी सरस्वती केंद्रीय भूमिका रखती हैं। ब्रह्मा की सहचारिणी सरस्वती को वीणा, जो एक तार वाला वाद्ययंत्र है, बजाने में पारंगत दिखाया गया है, और वह कलात्मक अभिव्यक्ति व ज्ञान के साकार रूप में परम पूजनीय हैं।

जहां भारत की संगीत विरासत का पूरे विश्व में डंका बजता है, वहीं संगीत रचनाकारों और संगीत में पूर्णकालिक कैरियर की परिकल्पना करने वालों को, अक्सर अपनी कला से स्थायी आजीविका कमाने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

ईवाई द्वारा किए गए हालिया अध्ययन ‘द म्यूजिक क्रिएटर इकोनॉमी: द राइज ऑफ म्यूजिक पब्लिशिंग इन इंडिया’ के अनुसार, भारत में लगभग 40,000 संगीत रचनाकारों के योगदान से सालाना 20,000 से अधिक मौलिक गाने उत्पन्न होते हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हर साल 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व कमाते हैं। हालाँकि, एक संगीत रचनाकार के रूप में अपने करियर के दौरान कई संगीतकार खुद को वित्तीय चुनौतियों से जूझते हुए पाते हैं। सर्वेक्षण में शामिल 500 संगीत रचनाकारों में से, 87% उत्तरदाताओं ने केवल अपने संगीत से ही आजीविका कमाना पसंद किया था, जबकि उनमें से महज 60% लोग ही ऐसा करने में सक्षम हो पा रहे हैं। अधिकांश संगीतकारों का दृढ़ विश्वास था कि उन्हें म्यूजिक प्रोडक्शन के बारे में, तथा अपने संगीत से बेहतर कमाई करने के तरीके सीखने की जरूरत है। केवल 56% उत्तरदाताओं के पास ही म्यूजिक प्रोडक्शन के जरूरी उपकरणों और बुनियादी ढांचे तक पहुंच मौजूद थी। जबकि विश्व औसत की तुलना में भारत प्रति व्यक्ति अधिक संगीत की खपत करता है, रिकॉर्डेड संगीत से राजस्व कमाने में इसका दुनिया में 14वां स्थान है। इसके विपरीत, कानूनी स्पष्टता का अभाव और इसके परिणामस्वरूप अनुपालन में होने वाली कमी जैसी विभिन्न समस्याओं के चलते, पब्लिशिंग से प्राप्त राजस्व 23वीं पायदान पर है। संगीत कारोबार के बारे में दूर-दूर तक फैली हुई समझ की कमी के कारण, उत्पादित संगीत की विशाल मात्रा और उद्योग के भीतर कई संगीत रचनाकारों की सीमित कमाई के बीच भारी असमानता बढ़ी है। यह इस अंतर को पाटने की तत्काल जरूरत बताती है, जो अभियान का मुख्य उद्देश्य है।

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“माई म्यूजिक, माई राइट्स” नामक अभियान पूरे देश के संगीत रचनाकारों के बीच जागरूकता बढ़ाकर और उन्हें सहायता प्रदान करके इस खाई को पाटने का प्रयास करता है। रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि रिलीज किए गए 33% संगीत में क्षेत्रीय कंटेंट शामिल होता है, जो भारत के विविधतापूर्ण संगीत परिदृश्य का द्योतक है। फिर भी, पहुंच बनाने, कॉपीराइट को लेकर जागरूकता और प्रकाशन के अधिकारों जैसी चुनौतियाँ, कलाकारों को उचित पहचान और मुआवजा दिलाने में बाधक बनती हैं। ऑनलाइन व ऑफलाइन सत्रों वाली कार्यशालाओं और सेमिनारों की एक श्रृंखला के माध्यम से, तथा देश भर में अन्य गतिविधियां आयोजित करके, आईपीआरएस इन बाधाओं को दूर करने और इस उद्योग की गुत्थियों को कारगर ढंग से सुलझाने के लिए, रचनाकारों को सशक्त बनाने का प्रयास करती है।

समारोह में मौजूद लेखक, कवि, अभिनेता और फिल्म निर्देशक वरुण ग्रोवर ने इस पहल पर टिप्पणी करते हुए कहा, “जैसा कि हम ‘रागा टू रॉक’ के लॉन्च समारोह में भारतीय संगीत के समृद्ध चित्रपटल का जश्न मनाने हेतु इकट्ठा हुए हैं, यह हमारे जीवन और संस्कृति पर संगीत के गहरे असर का एक हृदयस्पर्शी रिमाइंडर है। यह समारोह केवल गीतों और मेलोडी पर ही केंद्रित नहीं है; बल्कि रचनात्मकता और सृजन के पीछे मौजूद लोगों को पहचानने और उनका समर्थन करने के बारे में गंभीर चर्चा छेड़ने का मंच है। आइए संगीत का मूल्यवर्धन करने के लिए एक सुर में अपनी आवाज मिलाएं और अपने देश की सांस्कृतिक पहचान की आधारशिला मान कर इसका पालन-पोषण करें।”

आईपीआरएस के सीईओ राकेश निगम ने अपने विचार साझा करते हुए कहा, “जैसे-जैसे संगीत उद्योग नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है, गीतकारों, संगीतकारों और स्वतंत्र रचनाकारों को अपने अधिकारों के बारे में सुपरिचित होना ही चाहिए और उन्हें टिकाऊ करियर बनाने के लिए सुसज्जित रहना होगा। आईपीआरएस में, हम प्राथमिकता देकर शिक्षा और विशेषज्ञता के माध्यम से संगीत रचनाकारों को सशक्त बनाते हैं। संगीत की समृद्ध विरासत और अपने जीवन में संगीत के विराट मूल्य को पहचानते हुए, आइए एक राष्ट्र के रूप में अपने देश के संगीत को एक संपन्न और टिकाऊ भविष्य प्रदान करने के लिए संगीत का समर्थन, पालन-पोषण करने और बढ़ावा देने की अपनी सामूहिक जिम्मेदारी स्वीकार करें।”

देहरादून,19 फरवरी, 2024। आईपीआरएस ने अपना राष्ट्रव्यापी अभियान, “माई म्यूजिक, माई राइट्स” लॉन्च किया। यह पहल एक टिकाऊ संगीत उद्योग के लिए, संगीत के अंतर्निहित मूल्य तथा रचनाकारों व उनकी रचनात्मकता का सहयोग व समर्थन करने की जरूरत को लेकर राष्ट्रव्यापी चर्चा छेड़ना चाहती है। संगीत भारत के सांस्कृतिक चित्रपटल में एक अभिन्न स्थान रखता है, जिसका संदर्भ प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। प्राचीन काल में विचरण करने पर, भारत की अथाह संगीत विरासत की जड़ें उसके पवित्र ग्रंथों में गहराई तक जमी हुई मिलती हैं। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मदेव को सामवेद के दिव्य मंत्रों से संगीत की व्युत्पत्ति करने का श्रेय दिया जाता है, जो स्वयं अलौकिक जगत का प्रतीक है। ब्रह्मा के साथ-साथ, सृष्टि के पालनहार विष्णु, और संहारक शिव जैसे देवताओं को संगीत के संरक्षक के रूप में पूजा जाता है, जो आध्यात्मिकता और संस्कृति के साथ उसके अंतर्भूत संबंध को रेखांकित करता है। दैवीय समूह में, संगीत और ज्ञान की देवी सरस्वती केंद्रीय भूमिका रखती हैं। ब्रह्मा की सहचारिणी सरस्वती को वीणा, जो एक तार वाला वाद्ययंत्र है, बजाने में पारंगत दिखाया गया है, और वह कलात्मक अभिव्यक्ति व ज्ञान के साकार रूप में परम पूजनीय हैं। जहां भारत की संगीत विरासत का पूरे विश्व में डंका बजता है, वहीं संगीत रचनाकारों और संगीत में पूर्णकालिक कैरियर की परिकल्पना करने वालों को, अक्सर अपनी कला से स्थायी आजीविका कमाने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ईवाई द्वारा किए गए हालिया अध्ययन ‘द म्यूजिक क्रिएटर इकोनॉमी: द राइज ऑफ म्यूजिक पब्लिशिंग इन इंडिया’ के अनुसार, भारत में लगभग 40,000 संगीत रचनाकारों के योगदान से सालाना 20,000 से अधिक मौलिक गाने उत्पन्न होते हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हर साल 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व कमाते हैं। हालाँकि, एक संगीत रचनाकार के रूप में अपने करियर के दौरान कई संगीतकार खुद को वित्तीय चुनौतियों से जूझते हुए पाते हैं। सर्वेक्षण में शामिल 500 संगीत रचनाकारों में से, 87% उत्तरदाताओं ने केवल अपने संगीत से ही आजीविका कमाना पसंद किया था, जबकि उनमें से महज 60% लोग ही ऐसा करने में सक्षम हो पा रहे हैं। अधिकांश संगीतकारों का दृढ़ विश्वास था कि उन्हें म्यूजिक प्रोडक्शन के बारे में, तथा अपने संगीत से बेहतर कमाई करने के तरीके सीखने की जरूरत है। केवल 56% उत्तरदाताओं के पास ही म्यूजिक प्रोडक्शन के जरूरी उपकरणों और बुनियादी ढांचे तक पहुंच मौजूद थी। जबकि विश्व औसत की तुलना में भारत प्रति व्यक्ति अधिक संगीत की खपत करता है, रिकॉर्डेड संगीत से राजस्व कमाने में इसका दुनिया में 14वां स्थान है। इसके विपरीत, कानूनी स्पष्टता का अभाव और इसके परिणामस्वरूप अनुपालन में होने वाली कमी जैसी विभिन्न समस्याओं के चलते, पब्लिशिंग से प्राप्त राजस्व 23वीं पायदान पर है। संगीत कारोबार के बारे में दूर-दूर तक फैली हुई समझ की कमी के कारण, उत्पादित संगीत की विशाल मात्रा और उद्योग के भीतर कई संगीत रचनाकारों की सीमित कमाई के बीच भारी असमानता बढ़ी है। यह इस अंतर को पाटने की तत्काल जरूरत बताती है, जो अभियान का मुख्य उद्देश्य है। “माई म्यूजिक, माई राइट्स” नामक अभियान पूरे देश के संगीत रचनाकारों के बीच जागरूकता बढ़ाकर और उन्हें सहायता प्रदान करके इस खाई को पाटने का प्रयास करता है। रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि रिलीज किए गए 33% संगीत में क्षेत्रीय कंटेंट शामिल होता है, जो भारत के विविधतापूर्ण संगीत परिदृश्य का द्योतक है। फिर भी, पहुंच बनाने, कॉपीराइट को लेकर जागरूकता और प्रकाशन के अधिकारों जैसी चुनौतियाँ, कलाकारों को उचित पहचान और मुआवजा दिलाने में बाधक बनती हैं। ऑनलाइन व ऑफलाइन सत्रों वाली कार्यशालाओं और सेमिनारों की एक श्रृंखला के माध्यम से, तथा देश भर में अन्य गतिविधियां आयोजित करके, आईपीआरएस इन बाधाओं को दूर करने और इस उद्योग की गुत्थियों को कारगर ढंग से सुलझाने के लिए, रचनाकारों को सशक्त बनाने का प्रयास करती है। समारोह में मौजूद लेखक, कवि, अभिनेता और फिल्म निर्देशक वरुण ग्रोवर ने इस पहल पर टिप्पणी करते हुए कहा, “जैसा कि हम ‘रागा टू रॉक’ के लॉन्च समारोह में भारतीय संगीत के समृद्ध चित्रपटल का जश्न मनाने हेतु इकट्ठा हुए हैं, यह हमारे जीवन और संस्कृति पर संगीत के गहरे असर का एक हृदयस्पर्शी रिमाइंडर है। यह समारोह केवल गीतों और मेलोडी पर ही केंद्रित नहीं है; बल्कि रचनात्मकता और सृजन के पीछे मौजूद लोगों को पहचानने और उनका समर्थन करने के बारे में गंभीर चर्चा छेड़ने का मंच है। आइए संगीत का मूल्यवर्धन करने के लिए एक सुर में अपनी आवाज मिलाएं और अपने देश की सांस्कृतिक पहचान की आधारशिला मान कर इसका पालन-पोषण करें।” आईपीआरएस के सीईओ राकेश निगम ने अपने विचार साझा करते हुए कहा, “जैसे-जैसे संगीत उद्योग नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है, गीतकारों, संगीतकारों और स्वतंत्र रचनाकारों को अपने अधिकारों के बारे में सुपरिचित होना ही चाहिए और उन्हें टिकाऊ करियर बनाने के लिए सुसज्जित रहना होगा। आईपीआरएस में, हम प्राथमिकता देकर शिक्षा और विशेषज्ञता के माध्यम से संगीत रचनाकारों को सशक्त बनाते हैं। संगीत की समृद्ध विरासत और अपने जीवन में संगीत के विराट मूल्य को पहचानते हुए, आइए एक राष्ट्र के रूप में अपने देश के संगीत को एक संपन्न और टिकाऊ भविष्य प्रदान करने के लिए संगीत का समर्थन, पालन-पोषण करने और बढ़ावा देने की अपनी सामूहिक जिम्मेदारी स्वीकार करें।” “माई म्यूजिक, माई राइट्स” न केवल संगीत रचनाकारों को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बन गया है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भारत के विविधतापूर्ण संगीत परिदृश्य को संरक्षित और पोषित करने की सामूहिक प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है। यह अभियान विशेष रूप से संगीत रचनाकारों और उद्योग के पेशेवरों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो उन्हें संगीत और रॉयल्टी के मौजूदा विकसित हो रहे परिदृश्य से पार पाने का बेशकीमती ज्ञान और संसाधन प्रदान करता है।”माई म्यूजिक, माई राइट्स” न केवल संगीत रचनाकारों को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बन गया है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भारत के विविधतापूर्ण संगीत परिदृश्य को संरक्षित और पोषित करने की सामूहिक प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है। यह अभियान विशेष रूप से संगीत रचनाकारों और उद्योग के पेशेवरों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो उन्हें संगीत और रॉयल्टी के मौजूदा विकसित हो रहे परिदृश्य से पार पाने का बेशकीमती ज्ञान और संसाधन प्रदान करता है।

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